पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१५८

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रश्मि रेखा आकर इस सध्या को कर दो सिन्दुर दान अञ्चल ओंट दीप बन बहसो अहो प्राण ग्रहण करो आकर मम सध्या वन्दन सुजान हरण करो युग युग का मेरा यह हिय सम तुम मेरे सभ्या पथ में विहस उठो प्रियतम तुम । (३) दिन तो छोटा निकला बीत गया यह यों ही वह कैसे बीता ? बस बीता है ज्यों-त्यों ही पर अब कुछ चेत हुआ-सध्या आई यों ही करोगे न निशि निबाह क्या मेरे सक्षम तुम ! आआ इस सध्या में मुसकात प्रियतम तुम । (४) अश्य थ विटप- देखो वह एकाकी सना शाद हुआ जो दिन में हहराता था कैंप-कप । मैं भी ऐसा ही जैसा वह जड पादप ! मुझे सुगति दान करो आ मेरे अनुपम तुम अमिता स्मिति छिटकाओ मम मग में प्रियतम तुम । १२२