पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रश्मि रेखा में इस प्रकार भर दें कि समिश्रित बिम्बों की स्पष्टता भी नष्ट न हो और अकेला भाव विचार और चित्र अलग चमकता रहे। बिहारी का एक दोहा रूप ब्यापारी के मिश्रया का सौंदर्य प्रदर्शित करने के लिये नीचे दिया जाता है पतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय साह कर भौहन हसे देन कहै नटि जाय । आगे देखिये । विरोध अलकार पर आश्रित कई छोटे-छोटे विचार किस प्रकार उलमे हाने पर भी अलग-अलग चमक रहे है- हग रत टूटत कुटुम, जुरत पतुर चित प्रीति परति गाँठ दुरजन हिये दई नई यह रीति । इस प्रकार के अटपटे और कला पूर्ण वाहे और सोरठे हिंदी में भरे पर है । बरखा म भी मिठास भर दी गई है। द बिहारी कबीर रहीम सुलसी वियोगी हरि दुलारेलाल और बालकृष्णा सभी के दोहा के अका म सक्तियाँ पलती है । उन्हें यहाँ देकर इस लख का कलवर नहीं बढ़ाना है। गीत एक स्वतंत्र साहित्यिक प्रयास है । वह संगीत और कविता के सोहाग की इन है। उसके किसी पक्ति म त य का स य अथवा परिस्थिति का सत्य भी सक्ति के रूप में मिल सकता है। यति वैचित्र्य का रूप भी उसम कलाकार भर सकता है प्रकृति का विम्य प्रतिबिम्ब ग्रहण भी दिखाई पड़ता है। मन की नाना मनोरम यत्तिया का विस्फोट भी मिल सकता है और उनका सधा हुआ निखरा रूप भी। कोई भी यस्त भाष विचार प्रति श्रार गति गीत का विषय बन सकता है। अभियनन म सगीत का मार्दव भार नाद सौ टन की योजना अनिवाय है। रातिकाल को प्रतिक्रिया के रूप में हिंदी बड़ी बोली म छायावाद को जो अक्तारणा हुई उसका परिणाम सवत्र अच्छा ही नहीं हुआ। रहस्यबाद तो वस्तु के रूप म थोरे काल तक ही चला । जहाँ अलफार वाद क स्थूल याद' का नख शिस्त्र वर्णन नायिका भेद घटतु वणन बारहमासा वर्णन की भी परिपाटी की लीक समाप्त हुई और लोगों का मन का रवान के अध्याम से विरत हुआ तो फिर रहस्यवाद वस्तु से हट गया । छायावाद नै उसका स्थान दिया। परतु आगे बढ़ । 1 1