पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१६०

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रश्मि रेखा तू मत कूके कोयलिया, सखि, मेरे हिय में टीस उठे है तू मत फूके कोयलिया सखि श्वास रु धी है प्राण घुटे हैं तू कत कूके कोयलिया सखि ? तू मत फूके कोयलिया सखि । अमराई के घन झुरमुट में मगन मगन मन पैठ रही मखि तेरे आकुल पचम स्वर से रस या विष की धार बही सखि ? ओ रस सिद्धा विजन विजयिनी तूने मम हिय हार कही सखि चेती है मेरी चिनगारी तू कत कूके कोपलिया, सखि ? तू मत कूके कोयलिया सखि।