पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१६२

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रश्मि रेखा ठिठुरे हैं विकल प्राण ठिदुरे हैं हाथ पॉर सन शरीर कम्पमान रोम-रोम कण्टक सम ठिठुर गए विकल प्राण । शिलीमूत पिण्डबद्ध धमनी गत रुधिर धार घनीभूत श्वास-पवन गाडीभूत हिय विचार अब तो है असहनीय विप्रयोग शीत मार मन्द स्मित फिरणों से विहस करो प्राण दा ठितुरे है विकल' माण। १२५