पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१६४

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रश्मि रेखा हवा हहर अवों में कहती यह शीत बात तरे प्रिय विमुख हुए अब तेरी क्या बिसात ? सकल मनारथ तेरे सपने है मनसि जात ! सच है क्या यह सब कुछ बोलो तो सुरस-खान ! ठिहरे हैं षिकल प्राण। शिला कारागर उन्नाव विना ३१ दिसम्बर १६४२