पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१६६

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रश्मि रेखा देखे महल झोपड देखें हास विलास मज के संग्रह क विग्रह सब देखें जचे नहीं अपन लालच लगा कमी पर हिय में मच न सफा शोणित उद लन हम अनिकेतन हम अनिकेतन । (६) हम जो भटके अब तक दर दर अब क्या खाक बनायेगे घर हमने देखा सदन बने हैं लोगों का अपना-पन लेकर हम क्यों सन इट गारे में ? हम क्यों बनें यथ में बेमन हम अनिकेतन हम अनिकेतन । ठहरे अगर किसी के दर पर कुछ शरमा कर कुछ सकुचाकर तो दरबान कह उठा--बाबा आगे जा देखा कोई घर । हम दाता बनकर बिचरे पर हम भिक्षु समझ जग के जन हम अनिकेतन हम अनिकेतन । श्री गणेश कुटीर कानपुर दिनार अप्रल १६ रात्रि १ बजे } १२९