पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१६८

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रश्मि रेखा (२) सदा वस त हमारे हिय में पलकों में मधु मार नयनों में हैं स्वप्न मिलन की सुखी और खमार आज सखि नवल वसन्त-बहार कर रही मदिर भाव सञ्चार आज सखि नवल वसत बहार। हम वासन्ती सतत सनासन हम है स्नेहागार इसमें क्या वसन्त की महिमा ? यह है तब स्मर-सार आज सखि नवल वसत-बहार कर रही मदिर भाव सञ्चार आज सखि नवल वसत-बहार। मेरे जीवन के तरुवर की ओ कलिक सुकुमार यौवन-डाली पर हस झूलो करो तनिक ऋतु-रार आज सखि नवल बसत बहार कर रही मदिर भाव सञ्चार आज सखि नवल वसन्त बहार।