पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१६९

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रश्मि रेखा मृदु गल पहियों डाल विहसत्ती बन आओ गल-हार अब कैसी यह शिझक सलोनी। यह कैसा अविचार आज सखि नवल वसन्त बहार कर रही मदिर भाव-सञ्चार आज सखि नवल वसन्त बहार ।