पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रश्मि रेखा (२) भर गया आकण्ठ हिय-तर ललक उमडा नयन का जल कर उठा नत्त न हृदय का कमल विकसित मुदित पल पल उस सिहरते भीम नीचे झुक हगों ने चरण सींचे नेह रस वश अधर उनके हिल गये जीवन डगर में । आज परसों बाद पीतम मिल गये जीवन खगर में ।