पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१९

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रश्मि रेखा हो यह चमत्कार दिखात थे और समस्त उल्लिका मम और तारतम्य को लुप्त करता ये ठीक नहीं समझते थे। कबीर कहते हैं- काहे री नलिनी तू कुम्हिलानी । तोरे हि नाल सरोवर पानी । जल में उतपति जल में बास नलिनी तोरु निवास । ना तल तपत न ऊपर आग तोर हेत कहु का सन लाग। कहैं कबीर जे उदिक समान नहिं मुए हमारे हि जान । कोर पड़ने वाले यह भली प्रकार जानत है कि वे उदिक अर्थात् जल को पराम के अर्थ में सर्वश्न प्रयोग करते हैं। जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी यहाँ भी पानी परमय के अब में प्रयुक्त है। नलिनी मामा के अर्थ में है। वैत का प्रसार माया का प्रसार है इसी श्रम में पा कर आत्मा कष्ट उठाती है। वह अपने से थलग किसी शक्ति का भ्रम करती है फिर दुल का अनुभव करती है। यदि यह अपने को उदिक मय अथवा ब्रह्ममय समझने लगे तो इस अद्वैत स्थापना से न का दुख अनुभव करेगी और न कबीर की भाँति मृत्यु अनुभव करेगी। इस पति का चमत्कार अन्योकि साधना से धन पड़ा है । जायसी का संकेत देखिये- भंवर छपान हस परगटा अर्थात् काले केश समाप्त हो गये और धवल केश दिखाई देने लगे। काले केशो का सकेत भवर से और भवस केशों का इस से किया गया है । भवर की परिश्रमण पत्ति नये-नये स्नेह जोरने की वृनि उसकी चचलता सभी में तपाई १