पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/२०

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का आरोप रहता है। इसी प्रकार नीर क्षीर विधेकी धीरे धीरे से पग धरने वाला हस परिपक्क बुद्धि शुढ़ापे का अच्छा उपमान है। इन सकेता में उपमानों के अर्थ बोष में इतना सामर्थ्य है कि सकेत दुरूह न हो। बस इसी ओर यान देने की आवश्यकता है। अर्थ और भाव चाहे जितनी कोठरिया म बद क्या न हो उसका सूत्रधार पर ही मिलना चाहिए जिसके सहारे अथवा झटके से सारी ध्वनि समय में आ जाय । यह बड़ी सराहना की बात है कि बा Ten के गोत दुरूह और अस्पष्ट नहीं हैं। उनमें दो चार त सम सस्कात शदा का काठिय मिल सकता है परंतु अमि यजन सुरूह नहीं है। एक और दोष को साधारणा प्रकार से अाजकल के गीता में देखा आता है वह पूर्णता का अभाव है। गायक आठ-दस पक्तियों में किसी विचार अथवा भाव अपना घले चिन्न को उठाता है और उसको पूर्णता प्रदान किये बिना छोड़ देता है और समझता है कि उसने एक उत्तम गीत रच दिया । यह भ्रम है। दो चार जाज्वल्यमान उक्तियाँ दो एक उक्ति वैचि य के चमकीले टुकड़े दो-तीन अलग अलग उनके विचार, एक दो भाव वृत्ति के झकझोर-इन सयके समक्त रूप म आ जाने से कोई उक्ति गीत नहीं हो जाती। गीत के लिये आरंभ की प्रति ही से परिस्थिति को सगीत के सहारे क्रम क्रम स ऊपर चढ़ने के लिये एक भाव सोपान मिलना चाहिए जिसमें लचक का सौंदय और झूला चाहे हो परत उखबी सोदिया पर कृपने को आवश्यकता न पडे । अन्यमा चेतनता सावधान होकर मस्ती खो देगी । और फिर परिस्थिति को पूरा विस्तार दिये बिना गीत में एक निष्ठा एक प्रेरणा एक निवेदन की योजना कहाँ हो सकेगी। पूणता के अभाव में सामुहिक श्रावात का प्रभाव भी कुण्ठित ही रहेगा। इस सबंध में भी यही निवेदन है कि बालकृषया के गीता में यह दोष नहीं सा है। बालकृणा के गीता मैं मासल भावुकता है। अभि यजन की तिलमिलाहट है। प्रिय का रूप चिरतन पालम्बन है । अतीत के सपर्क स्मृति सचारी का काम देते हैं। रस राज धगार उनके गीता का मम है। सयोग और वियोग दोनों पक्षाक दर्शन होते हैं । सयोग बहुत कम और अधिकतर मानसिक और कहाँ कहीं कुछ अनुभूत अतीत अवसरा के रतिपूर्ण क्षणों को याद जिसमें वियोग भी मिला U प्राण तुम्हारी हासी लचीली ।"