पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/२२

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रश्मि रेखा अनुसार सवारा है। वास्तव में स्त्री रूप में बार-बार का संबोधन कुछ शील सम्पन्न भी नहीं मालूम होता है और सारी उक्ति का वाच्यार्य ही अधिक सामने आता है लक्ष्यार्थ तक मन को पहुँचाने में भावना पानाकानी करती है। बालकृपा के वियोग चित्रा में अतीत के रमण स्वरूपा का बल भी रहता है और भविष्य की रमण भूमि की अनेकाथा कामना भी काम करती है। एक उदाहरण देखिये आओ थालिहारी जाऊँ तुम भूलो आज हिंडोले मैं झोटे दू तम चढ़ जाओ भूले पे अनबाले मेरी अमराई में झूला पड़ा रसीला बाले चवर हुलाते हैं रसाल के रसिक पण हरियाले रस लोभी अलिगण मडराते हैं काल भौराल सूना झूला देख उमर बात है हिय में छाले आओ पैग बढ़ाओ मूल की तुम हौल-हौले सजनि निछावर हो जाऊँ तुम भूलो आज हिंडोले ! भोली सहज लाज मोहकता निज नयनों में घोले आकर सुहरा दो मेरे हिय के सुकुमार फफोले . आन कपा दो इस झूले की रसिक रज्जु की फाँसी मेरी उकठा को सुदर डालो गलबहियाँ-सी कासि ? क्यासि १ प्यासी आखों से बरस रहीं फुहियाँ सी आ जाओ मरे उपवन में सजनि, धूप छहियाँ सी झुक झुक झूम-झूम खिल जाओ हृदय अथियाँ खोल सम झूलो आज हिंडोल ।' आओ बलिहारी जाऊ,