पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/२४

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रश्मि रेखा यो मेरे सगीत रसीले तव मृदु चरणों में दर जाए यही मनाता हू कि कभी मैं गायन-वन लहरी बन छाऊँ यही साथ है मियतम मेरे कि मैं तम्हें निज गीत सुनाऊ | कल तुम्हारे श्री चरणों में गीत सुनाकर जन मैं व दन तब तुम सहला देना मेरे धवल फेस हे जीवन-मदन ! मैं प्राचीन नवीन बनू गा होगे विगलित मेरे व धन यह वर देना कि मैं सदा नव नव गीतों स तुम्हें रिझाज यही साध है मियतम मेरे कि मैं तुम्हें कुछ गीत सुमाऊ । इसी प्रकार आसन्न प्रिय के प्रति प्रणय निवेदन की झाँकी देखिये- मृदु गल बहियाँ डाल विहसती बन जाओ गल हार अब कैसी यह सिझक सलोनी? अब कैसा अविचार। आज सखि नवल घस त बहार कर रही मदिर माव-सज्वार आज सलि नवल क्स त बहार।" बालकृष्ण प्रकृति का सदर चित्रण समक्ष रखने म घरे निपुण हैं। उनका रूप प्रदर्शन सकुल और बिम्ब-प्रतिबिम्ब होता है । प्रकृति को निज के राग द्वेश से स्वतत्र भी देखने और दिखाने की पमता उनम है । ऊषा के चित्रण में भी आप देखेंगे कि प्रात काल के पाठव में समस्तता तो है ही सगीत की पूण योजना है जिससे गीत पूरा सार्थक हो गया है। रुन झुन गुन गुन रुन-शुन गुन गुन भ्रमरी-पाँजनियाँ पुजारी तन-मन माण श्रष। ध्वनि नन्दित आह यह अरणा सुकुमारी ।