पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/२५

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ण्ठा चेतन वन वन में कम्पन निष्पन्दन भर भर विचरा सनन समीरण पश अवलिया के अ तर से गुबे नव नव स्वागत के स्वन सिहर उठे अग के रज कण कण पुलकित प्राण खिल जलज खिले मानों अरुणा ने अपनी अखियाँ सजल उधारी । बजी भग-पांजनियाँ आई ठुमुक तमुक अरुणा सुकुमारी॥ (२) किरण माजनी से मृदुला ने दूर किया वह दुदम तम धन अरुण-अरुण निज कोमल कर से चमकाया अम्बर का आँगन लुप्त हो बले मह तारक गण विहसीं सकल दिशायें मुद मन अम्बर से अपनी तक लहरी अरुणा की सतरंगी सारी गगन अटा से हस मुसकाती उतरी नव बाला सुकुमारी। हसी मेदिनी हँसे शैल गण तरु लतिकायें इसी अकारण कलियाँ हसी पण वृण हुलसे गान कर उठे सब द्विज चारण गूजा मन्न छद उच्चारण तम मौन निवारण अनहद नाद मगन नभ मखल नाद भगन सब गगन बिहारी तन मन श्रवण निनादित करती आई यह अरुणा सुकुमारी । इसी प्रकार इनकी कविता काषपनिक अवसर है। वे भाव चित्र है। इन गौतों की सबसे बड़ी विशेषता उनका सगीत मार्दव है। पक्रिया का उद्दश्य मूर्ति