पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/२६

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रश्मि रेखा माम चित्री द्वारा हरि असुरजन उत्तमा नहा है जितना कि वातावरण के सकल स्वरूप में परिस्थितिया के रूप म्यापारों को श्रवया चित्रा में उपस्थित करना है। नादा को शन्ना की व्यवस्था देना ध्वनियों के धागा का ऐसा सुलझा रूप कानों तक पहुँचा देना कि प्रवण-भाव सृष्टि भाव से अधिक चिरतन बना रहे को कुशल कलाकार का काम है। साधारयातया प्रकृतिरूप भावाधीन है। उससे नहीपन का ही काम लिया गया है। वर्षा लोके शोषक कविता का कुछ अश देखिये - अब कि नील अम्बर में श्यामल घन का दुआ तन जाता है, उपवन जब कि सिहर उठता है बन कम्पन-मय बन जाता है उन घड़ियों में तुम जानो हो क्या-क्या मेरे मन भाता है खूब जानते हो उस क्षण में क्यों लगता है कुछ-कुछ रोने कौन बात ऐसी है मेरी जो तुमसे हो छिपी सलोने ? ये घन गन जो इधर पधारे आज उधर भी आए होंगे जो मेरे कारागृह छाए थे याँ भी तो छाये होंगे जो लाए रोमाच धर वे पुलक उधर भी लाये होंगे तुम भी भीजोगे इनसे जो आए है यो मुझे मिगोंने मूरख मेष तुम्हारे बिन ही आए यो मेदिनी सजोने । तुम्हें याद है धन गर्जन क्षण नित नूतन परिरम्भण मय है ये अटपटे हवा के झोंके बने स्मरण अवलम्बन मय है। पर ये मेरे लिये यहाँ तो आज बन गये कदन सय हैं