पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रश्मि रेखा ये सब सजधज कर आये है अपने ही में मुझे हुमोने और काटने दौड रहे हैं ये कारा के कोने कोने । X X X नदी क लिये कहो तो क्या बरसात गई या आई? मेरी क्या आदी चित्रा यह १ प्रिय मेरी क्या शरद जुहाई। क्या हेम त शिशिर ऋतु मेरी ? मरी कौन वसन्त-निकाई ? खोकर सब ऋतु ज्ञान चला हूँ मैं तो आज स्थय का खोने ! हैं खाली खाली रस भीने मेरे हिय के कोने काने । प्रिया हीन डरपत मन मारा याद आता है। जहाँ एक ओर तुम जानो हो लिखने म भाषा का स्थानिक प्रयोग कुछ खटकने सा "गता है वहाँ अतिम दो पतियों में सारी पार्थिवता को केवल सोपान की भाँति प्रयोग करके अपाथिवता को मानतो आकाक्षा का ऊपर चढ़ा दिया गया है। उनकी नग्न स्मरण भएर म साहियिकता कलापूर्णता सगोत का वाय शार भावना का मकमोर सभी एक साथ पनप रहे हैं। भागो मेरे प्राण पिरीत कविता म प्रात काल का कनामक वर्णन है। इसी प्रकार छिरे । विका प्राण की प्रतिम की चार पक्षियों में निंब ग्रहण कराया गया है । पहियों नीचे दी जाती है- धन गत यह पौष तरणि क्षीण तेज मानों मृत निष्पम सा काँप रहा मदमद धूमावृत ऋतु क्रतुकर सुकृत किरण आज हुई विकृत अनृत ऐसे क्षण विहस रखो दिनकर का गलित मान ठिठुरे है विकल प्राण । सनकी प्रणय की अनेक परिस्थितियाँ बीन के सानिध्य को अनेक मनुहार और रति यापार की याद और घेदना इन सबको इतनी आवृत्ति है कि यदि उनम स्वतन्त्र रूम स अभि यजन की मौलिकता संगीत का नया नया आवरण १८