पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/२९

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रश्मि रेखा Vवानी का केवल तूफान कविता नहीं है और न केवल युद्धापे की यकावट ही कविता है। अमर पर चलने वाली समूचे जीवन की पत्तियों का सामजस्य पूर्ण पक्कीकरण कविता है। इसीलिये हुये कलाकार सर्व युगीय (ोर सर्व देशीय भावों को पकाते हैं और घिरतन धड़कन को सुनते सुनाते हैं। परतु भाषा की कसमसाहट का भी अपना मुख्य है। अनियनित विस्फोट की भी एक भभक होती है। गहरी से गहरी भानुकता में ईमानदारी हो सकती है। वाशार्थों मोर मात्रा स्पों में सपन शीतलता हो सकती है। लोक साधना विहीन छमाष के धुरै बेनीक चलने वाले फकीर में भी सौंदर्य होता है। "हम अनिक्रतन हम अनिकेतन हम तो रमते राम हमारा क्या घर । क्या दर ? कैसा वेतन ? हम अनिकेतन हम अनिकेतन । कौन बनाए अब तक इतनी यों ही काटी अब क्या सीखें नव परिपाटी, आज घरौंदा हाथों चुन-चुन कंकड माटी डाद फकीराना है अपना बाघम्बर सोहे अपने सन हम अनिकेतन हम अनिकेतन । (२) देखे महल) झोपडे देने देखे हास विलास मल्ले के, सग्रह के विग्रह सन देखे, अपने लेखे लालप लगा कभी, परहिंय में मप न सका शोणित-उद लन, हम अनिकेतन हम अनिकेतन । ऊँचे नहीं कुछ