पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/३०

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रश्मि रेखा लोगों का हम जो भटके अब तक दर-दर अब क्या खाक बनायेंगे घर ? हमने देखा सदन बने हैं। अपना पन लेकर हम क्यों सने दगारे म? हम क्यों बने व्यर्थ में अमन ? हम अनिकेतन हम अनिकेतन । (४) बहरे अगर किसी के दर पर कुछ शरमा कर कुछ सकुचाकर तो दरवाम कह ठा-पापा आगे जा देखो कोई घर । हम दाना ,बनकर विचरे पर हमें भिक्षु समझे जग के जन हम अनिकेतन हम अनिकेतना। ऐहिक कोर की घोर वास्तविकता में भी विश्वास रमया कर सकता है। यथार्थ मेल के भीतर से भी सत्य चमक सकता है। पाप और पुराय दोनों सत्य है यह समझा और समझाया जा सकता है। पति केवल अभि यजन की निश्छलता की है और गायक की मिशा की है। यहाँ यह निभ्रांत रूप से कहा जा सकता है कि बालकृष्ण के सभी गीतों में निशा है भार निश्छलता है। अतएव मेरे समय यह प्रश्न उतना महत्व नहीं रखता कि उनके गीतों में व्यक्त से अभ्यत की ओर सकेत है अथवा नहीं अथवा उनके मतव्य पार्षिद न होकर आध्यात्मिक है। बहुत स्थलों पंरानमें भीमें भर गहरे आध्यात्मिक साकेत मिलते अवश्य - सीकर ब *तु ज्ञान चला हूँ मैं तो आज स्वयं को खोने ! खाली-खाली रस-भीने 'मेरे हिय के कोने-काने ।' X X X