पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/३१

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रश्मि रेखा हम तम मिल क्यों न कर आज नवल नीति-सृजन ? जिस पर चल कर पायें निज का ये सब जग-जन X X X X मास वष की गिनती क्यों हो वहाँ जहाँ मदतर जूझ ? युग-परिवतन करने वाल जीवन-~-वर्षों को क्यों बूझें? हम विद्रोही ।। कहो हमें क्यों अपने मग के कटक सूझ ? हमको चलना है 11 हमको क्या ? हो अँधियारी या कि जुहाई ! हिय में सदा चाँदनी छाई । से और भी उदाहरपा मिलये। परतु उन पर अधिक पख नहीं दिया जा सकता है। ससीम से निस्सीम की ओर उसन सकेत न मिलगे जितमा ससीम का विस्तार करके निस्सीम के बराबर पहुंचाया गया है। प्राण तुम्हारी हसी लजीशी कविता इसका उदाहरण है। लिन पाणिव कप व्यापार को कवि सामने रखता है जिन प्रतीका का आधार लेकर वह छ कहना चाहता है यदि उनका वर्णन चित्रण गायन अषमा मावना करण इतना विशद और सकुल हो जाता है कि गोता की रमण वृत्ति उहाँ म हिलग कर रह जाती है और उनम पार्थिव मेक और एत्रिक सिहरन उ पन होने सकती है तो फेल किसी पकिम काई विंअर्थक बात कहने में किसी अाध्यामिक सकेत का कोई मूल्य नहीं रहता । पाठक का मन तो पार्थिव परिस्थितिया को ही दुहराता रहेगा । बासकृष्ण के स्मरया कराटक की ये पक्लियों- हम समझे थे कि है सदा के हम कटकित बबूल। पर तुमने इस कहा सजन तुम १ तुमहो हरित रसाल से यह पनि निकालना कि आमा हमेशा अपने को परम से पृथक पाप रूपी कोटा से पूण समझती थी परतु परमा मा की एक मुस्कराहट ने उसके असली रूप को स्पष्ट कर दिया उतना प्रसगानफूल और समस्त कविता के सबन्ध में उचित नहीं प्रतीत होता जितना सीधा सादा वाच्यार्य जचता है जिसके अनुसार कवि गइ २२