पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/३३

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रश्मि रेला तन के रोम रोम पुलकित हो, लोचन दोनों अरुणा चकित हों नस-नस नव भकार कर उठे हृदय विकम्पित हो हुलसित हो मंच से तड़प रहे है-खाली पड़ा हमारा यह प्याला? अब कैसा विलम्ब ? साकी भर भर ला तू अपनी हाला । और ? और ? मत पूछ दियो जा- सु है माँगे वरदान लिये जा तू बस इतना ही कह साकी - और पिये जा। और पिये मा!!' हम अलमस्त देखने आये है तेरी यह मधुशाला अब कसा विलम्ब ! साकी भर भर ला तमयता हाला। (३) बड़े विकट हम पीने वाले - तेरे आए मतवाले इसमें सकोच लाज क्या? मर-भर ला प्याले पर प्याले । हम से पेडब प्यासों से पड़ गा आज तेरा, पाला, अब कैसा विलम्ब ? साकी भर भर ला त अपनी हाला 1