पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/३९

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रश्मि रेखा (२) किरण-मार्जनी से मृदुला ने दूर किया वह दुर्दम तम धन अरुण अरुण निज कोमल कर से चमकाया अम्बर का आँगन लुप्त हो चले ग्रह तारकगण विहसीं सफल दिशायें मुद मन अम्बर से अवनी तक लहरी अरुणा की सतरगी सारी गगन अटा से इस मुसकाती उतरी नव बाला सुकुमारी । (a) हसी मेदिनी हसे शैल गण तरु लतिकायें हसी अकारण कलियों हसीं पण तृण हुलसे गान कर उठे सब विज चारण उच्चारण पूर्ण हुआ तम मौर निवारण अनहद नाद मगन नम मडल नाद मगन सब गगन विहारी तन मन श्रवण निनादित करती आई यह अरुणा सुकुमारी। पूजा केत्रीय कारागार बरेली >