पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/४०

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रश्मि रेखा प्राण, तुम्हारी हंसी लजीली प्राण तुम्हारी हसी लजीली रजत जुहाई बन आई है हुई यामिनी मुदित रसीली प्राण तुम्हारी हँसी लजीली यह शव यो स्ना-स्मिति तर गिणी औ गभीर गंगा अम्बर की हिलमिल कर बन गई एक ही मानों द्विधा मिटी अतर की मिली तुम्हारी हास धुनी में यह नम शैवलिनी शंकर की - जिसकी विस्तृत तारा धारा अब न रही उतनी चमकीली प्राण तुम्हारी हसी लजीली ।