पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/४१

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रश्मि रेखा (२) नम में लहरी रौप्य लहरियाँ इन डून उत्तराए तारे, स्षय गगन की अमल नीलिमा विलस उठी श्वेताम्बर धारे सभ्रम सब हारे तन मन प्राण हुए उजियारे तुम क्या हो कि नभ के हिय से निकली तम भ्रम-अनी नकाली प्राण तुम्हारी हसी लजीली । दुदम तम दिक -म डल उत्लसित प्रफुल्लित विलसित गगन मगन तारक-नाण विहँसित पन-तृण-पण अवलियाँ राजत तुहिन हिमानी कण कण मद अलसित हेमन्त अनिल यह बहा झमता सन सन-सन सन पीकर तव स्मिति सुधा हो गई विभावरी बावरी नशीली । माण तुम्हारी हँसी लजीली। केद्रीय कारागार बरेली दिना १ दिसम्बर १९४३ }