पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/४२

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रश्मि रेखा वर्षा लोके कौन बात ऐसी है मेरी जो तुमसे हो छिपी सलोने ? तुम तो झॉक चुके हो मेरे अन्तस्तल के कोने-कोने । (१) अब कि नील अम्बर में श्यामल धन का पदुमा तन जाता है उपषन जब कि सिहर उठता है बन कम्पन-मय बन जाता है उन घडियों में तुम जानो हो क्या-क्या मेरे मन माता है खूब जानते हो उस क्षण में क्यों लगता हूँ कुछ-कुछ रोने कौन बात ऐसी है मेरी जो सुमसे हो छिपी सलोने ? ५