पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/५१

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रश्मि रेखा हिय में सदा चाँदनी छाई कुछ धूमिल-सी कुछ उज्ज्वल-सी झिल-मिल शिशिर चाँदनी छाई मेरे कारा के आँगन में उमड पड़ी यह अमित जुहाई। यह आँगन है उस भिक्षुक सा जो पा जाए अति अमाप धन ! उस याचक सा जो धन पाकर हो जाए उड़ात शून्य मन ॥ उसी तरह सकचा-सकुचा सा आज हो रहा है यह आँगन कहाँ घरे यह विपुल सपदा फैली जिसकी अमित निकाई? उमड पड़ी यह शिशिर-जुहाई। १४