पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/५५

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रश्मि रेखा तुम जीवन अपराह महर के चिंतन गहन गभीर चिर अनुराग विराग भरी सुम मम कविता सुकमार, माण तुम मेरे हृदय दुलार । तुम मम जनम जनम के संगी फिर भी नित प्राप्तव्य मम विकार भय सतत टोह के तुम सुलक्ष्य अधिकार प्राण तुम मरे हृदय-दुलार । मेरे पात समीरण की तुम शीतल मन्द सुगन्ध सुम मेरी धूमिल सध्या के नूतन ज्योति-प्रसार माण तम मेरे हृदय-दुलार ! ! मेरे धूल भरे माथे की तम हो कु कुम रेख तुम मेरे सुहाग की बिदी तम मम प्राणाधार प्राण तुम मेरे हृदय दुलार (७) जीवन भर खेला हू मैं जो अनल फाग दिन-रैन वह थी कृपा सम्हारी पो मैं क्या पाता पार प्राण तम मेरे बल-आगार ।