पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/५७

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रश्मि रेखा स्मरण कटक ग्रीव में वह तब मृदु भुज माल स्मरण-कंटक पन आई बाल तमने आकर विहस प्रियतमे नयमों में भर प्यार निज मुज-माला इस ग्रीवा में डाली थी उस काल स्मरण-शर यह बन आई बाल । इस वक्षस्थल पर शिर रख तुम मौन शात गम्भीर देख रही थी हमें हगों से प्राणापण-रस स्मरण वे शूल बने है बाल ।