पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/५८

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रश्मि रेखा हसी हसी में किसी सखी ने भर दी थी तब मांग उसकी झाई हमको अब भी करती है बेहाल स्मरण सब शूल बने हैं बाल ! (४) पह गुलाल मर्दित तव मुख छषि वे रतनारे नैन मानों आया इक तूफान विशाल, स्मरण शर बन आए है बाल । स्मृति में आए, प्रिय तुम क्यों हो इतनी अच्छी सघड सौम्य रस खान ? क्यों कर दिया हमारा जीवन तुमने सफल निहाल ? लखो अब ये स्मर-शूल कराल ! हम समझे थे फि है सदा के हम कटकित बबूल । पर तुमने हँस कहा सजन तुम? तुम हो हरित रसाल आज वे स्मरण बने है काल । रस भंग प्रिये हुआ है आज हमारा छन्द मग विप्रयोग हमारे हुए विषम बेताल सस्मरण बन आए है व्याल!