पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/६०

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रश्मि रेखा फागुन में सावन इस फागुन में भी घिर आए काले धौले मेघ गगन में मानो अमित पल बरसाने आए ये मेरे आँगन में लहर रही है मदमाती सी यह फागुनी बयार रसीली कर मधुपान हुई है मानों निपट बावरी और नशीली हहर हार कर छोड रही है मदिर स्वास निज सीली-सीली ना जाने कितना मद है इस उच्छखल उन्मुक्त व्यजन में । Fस फागुन में मी घिर आए काले धौले मेष गगन में। (२) आम नीम जामुन पीपल की शाखें मूल रही है झूला मानों फागुन में ही आया वह सावन पथ भूला भूला ! आई वर्षा यहाँ शिशिर में, पावस में किंशुक-वन फूला ।। आज प्रकृति वैरिन ने यह ऋतु रार मचाई मेरे मन में इस फागुन में ही घिर आए काले धौले मेष गगन में ।