पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/६६

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रश्मि रेखा मेरे सध्या नभ के मेरे जीवन-मग की ज्योति किरण भी हो तुम मम अपूर्ण बाहों के तम ही हो इच्छा द्रम यह हृदय-लगन सम मम मदार-सुमन । अब मेरे तम पाहुन व आए- जब मम मन नागन बीच तुम नव घन बन छाए अरुण नयन वाले प्रिय जब तुम मम मन भाए -- अहो तभी से मेरा पूर्ण हुआ अपना-पन । ओ मरे स्नेह-सुमन (४) प्रिय मेरे हिय में आए चोरी चोरी औं ले ली निज कर में मेरी जीवन-डारी रजित है तब रग में अब मम मुझको अब कहते है सभी तुम्हारा धारण ओं मम मदार सुमन । चादर कोरी इन्छा तुम कल्प वृक्ष