पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/६७

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रश्मि रेखा अब कैसी लोक लाज ? अब क्या सकोच सजन ? क्यों न आज बध तोड बह मुक्त स्नेह व्यजन ? हम तम मिल क्यों न करें आज नवल नीति-सृजन ? जिस पर चल कर पायें निज को ये सब जग बन ओ मम मदार-सुमन । केन्द्रीय कारागार बरेली विनोक। श्रप्रल १९४४