पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/६८

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रश्मि रेखा काल्पनिक अवसर लरज लरज हिय सिरज रहा है नव नव मधुर काल्पनिक अवसर जबकि तुम्हारी नित नूतन छषि मैं अपलोफू गा लोचन मर । लगन मगन उन्मन-उ मन मन ततुषाय सम सून ध्यान-रत अपनी चितन अशुलियों में चुन चुन मदिर विचार न तु शत- मनोरथों का साना थाना प्रमुदित पूर रहा है सतत मेरे विभय-अम्बर में अब लहर उठा है तव पाटम्बर । लरज लरज हिय सिरज रहा है नष नव मधुर काल्पनिक अवसर ! ततुवाय-धुनकर जुलाहा