पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/७

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[ २ ] को हमारी यास बुम्म गई है। यदि अवस्य न को रिपाया सगी रहती तो जग जीवन इतना विशङ्का इतना उ मत्त इतना वनाशो मन न हाता । हम घर आर्षवचन का भून गए जो अन त के अभ्यासी नचिकेता ने अपने सवेदन मार मन को गहराई से उद्गीरित किया था आर जिस बचन म मानव के युग-युग अनभव का सार भरा हुआ है । प्राचाय प्रवर गुरुदेव यम से नचिकेता न कहा था नतिन तपोयो मनु य । मनु य धन स तप्त नहीं हाता पन मात्र से ही वैभव से वित स हो उसको तप्ति नग हाती तप्ति के निय' तो पर पार को विपास खगनी गाहिय आर उसकी पूात होनी चाहिय । जन जीवन म वह यास नगे-- ऐसो मेरी इछा है। यदि वह तथा जगी तो धन की भूख-प्रधान समाज को मानव को अपने आपको चबाकर निगा जाने की यह राक्षसी भूम्ल-मिट जायग बार इस प्रकार जीवन म सतुन का आविर्भाव होगा। क्या मेरे ये गीत उस प्यास को जगाने में सहायक है यदि किसी भी परिमाए म और किसा मोसीमा तक य गीत मानव को उस ओर झुकात हैं ता उस परिमाण और सामा तक य उप देय कहे जा सकते हैं। पाठक पूट सक्त हैं तो क्या तं ये गीत प्यास गाने के लिये हा है क्या ये मान व देने के लिये नहीं है। पूछता हु क्या यास लगने म फेवल यथा--- अनुभव मान हा है। क्या उसम-- उस प्यास लगने को किया मजन प्राप्ति का प्रयत्न आन द नहीं है । श्या या सय नहा ह कि वेदना पार पया- यदि यह य का प्राप्ति के 'ग्य हा तो-- आनन्द शून्य नहा हाता जय ही क्या प्रिय प्रेय को प्राप्ति की प्रथा मर्भ श्रानन्द का पु रहता हा है। पर मैरै गोत मया शाश्वत टाह को नय की यास को जाग्रत करते हैं आलोचक पाठक मेरे गीता को पड़कर कह उ ग--या मृत्तिका की गुदिना । गीत है । ठीक तो है। परतु यह भी स य ह कि वहाँ सूनो ऊपर रिया को ब सेज है उस तक पहुँचने के लिये हम मृत्तिका के सोपान हा मित्र ह। ये इन्द्रिय उसकारण यह पचमहाभूता मक देह यह मन यह प्राग ये सब भी तो मृत्तिका- सभूत है न ? और कहा उपकरण के या यह देह बा देहो विहत्व बुद्ध- और ग्राम स्थिति को प्राप्त काने में समर्थ हो जाता है। कठो पनिषत्कार ने कहा 1 पराच कामान् अ यन्ति बाना । पाकगण अर्थात् निबु विजन बाध्य कामनाओं-केवल मान इन्द्रिय सुखा और भौतिक वस्तुअ-का अनगमन कर हैं उन्हें ही पाने में अपना जीवन बिता देत हैं । फिन्त जो इस प्रकार केवल