पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[३] बहिमु ख-जीवन यापन करत हैं उपनिषत्पनर के शवा में ते म योन्ति यितवस्यपाशम् -ये सबभ्यापिनी मत्यु के पाश म पा जाते हैं। आज का जग क्तितस्य म यो पाशम् फैली हुई विस्तृत म यु के पाश म फसा हुआ है। पतिमु खी वृत्ति नै सखार की यह गति बना दा । कि तु जो मैं कह चुका है, इसा मृत्तिका के पवन न एक दिन युद्धब एक दिन गाधी व प्राप्त किया था। यम क श दा म ये अनि य द्रव्य ही नित्य की प्राप्ति करा देत ह । यम ने तो गव के साथ नचिकेता से कहा—अनि यै द्र में प्राप्तवानस्मि नित्यम्-मैने अनि य दव्यों से हो नि य को ग्राम किया है। इसम भारवर हा श्या ? यदि सतुलित रखने में ये अनि य इनियाँ मानवता को गा धात्व भार बुद्धत्व प्रदान कर सकती हैं, तो मेरे गीत जो शानोचक की हरि म मृत्तिका की मरता के लिये गाए गए गीत ह क्या न काणा प्रेम सर्वभूत हित रति और स्वार्थ समपण को भावना जागृत कर सकें । हाँ उनका, वह साम ये इस बात पर अवलम्बित है कि मैं अपनी अनुभूति श्रार अभिव्यक्ति म कतक सदाशयी बार सदा नयो रहा है। य का की इदि स पाठक का मेरे गोता में दाष मिन सकत है। किन्तु मेरी भावना को सदाशयता का जहाँ तक मध है तहाँ तक क नाविज्ञा का सदेह करने का अवसर मिलगा । अपनी कृतियां को आनोचक की दर से देख सकना सरल काम नहीं है। इसलिये मैं यह कसे कह कि मेरे गात शाश्वत रूपेण म यवान है। वर्तमान समय म बातोचना के भो अनेक मान दरउ नि मत हुए ह । मेरे निक सत् साहि य का पफ हो मानदण्ड है वह यह कि किस सीमा तक कई साहिाँ यक कृति मानष को उच्चतर सुदरतर अधिक परिष्कृत एव समर्थ बनाती है। बहो साहिय सत् ह बहा साहि य क पा कारो एव म रह जो मानव को स्नेहमय बदामरित विचारखान् तथा बि सनशीन मनाता है। वहीं साहि य सत् है जा मानय म निरस एव निस्वार्थ कम रनिज गृत करता है । वहा साहिं य सत् है जा मानव को सबभून-हित को आर प्रवृत्त करता है । वही साहि य सत ह जा माननीय सकुचित युतिमा को अतिकमिन करने तथा मानव स्त्र का विस्तत करने म मानब का सहायक ह ता है । यह सभव है कि म इस कोनि के सत् साहि य का सजन नहीं कर सका हू। यह भी सभर ह कि मेरे गाता तथा मेरी करितामा में यासना की गध मिले । पर म इतना निवेदन कर देना चाहा हु कि मेरी कृतिया का अनित्य व्यता के पीछ नित्यता की छाया रही है। सम