पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/८७

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रश्मि रेखा (२) तान-सरलता मैं यौवन-पथ का लघु रज कण ठोक लाज का मैं उल्लघन अपर मिलन की मृदु घटिका में हृदय मिलन का मैं सुस्पन्दन मैं हू तमय उकठा की हूँ अविरलता अचल अनवरत नेह-अस्थि की मैं हूँ उलझी हुई सरलता प्रपल प्रतीक्षा की सुसफलता मैं हूँ सजनि चिर तन कम्पन मत तुकराओ मुझे सलोनी मैं हू प्रथम प्यार का चुम्बन । श्री गणेश कुटीर प्रताप कानपर दिनांक २१ नवम्बर १९३१ }