पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/८८

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रविम रेखा अरी मानस की मदिर हिलोर अरी मानस की मदिर हिलार ! मत बह मत उठ मत लहरा सू तेरा और न छोर अरी मानस की मदिर हिलोर । (8) गुप-चुप मधुप पान कर आया रस बू दे दो चार अब न उमड तु मम नीरवता में मत भर रस घोर अरी मानस की मदिर हिलोर !