पृष्ठ:रसकलस.djvu/१८८

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१७३ . भाव से रहकर अपने स्वच्छंद जीवन को व्यतीत कर देना चाहते दूसरे दल में अधिकतर वे अल्पवयम्क अल्हड़ कविजन हैं. जो समय हिदी-साहित्य क्षेत्र में नवीनता का आह्वान कर रहे है। = हृदय में उमगे लहर मार रही है, उत्साह उनमे कूट-कूट कर भरा 'नूत्रम् नूत्रम् पदे पदे उनका महामंत्र है। वे प्राचीन लकीरों को पी नहीं चाहते, वे अपना एक प्रशस्त मार्ग अलग निर्माण करने की धुन में हैं। उनको प्राचीनता से घृणा है, चाहे वह भारतीय आ रत्न का भंडार ही क्यो न हो। ये प्राचीन प्रतिष्टित कवियो की प उछालते रहते है, और प्राचीन ब्रजभाषा को रसातल पहुचाकर ही लेना चाहते हैं। उनकी भापा नई, उनका भाव नया. उनकी सून उनका विचार नया. रग नया, ढंग नया, छंद नया, प्रवध नया, नई, नीति नई. कोप नया, व्याकरण नया, उनका जो-कुछ है सब ही नया है-चाहे यह मच न हो। वे हिंदी-भाषा के प्रेमी है, कितु भी प्राचीना है, शायद इसीलिये उसको वे-तरह नीच खसीट रह पुराने मुहावरे लिखना पसंद नहीं, या लिख ही नहीं सकते, किंतु मुहावरो का ढेर लगा रहे हैं । वाक्यो का कुछ अर्थ हो या न हो, परं गढ़े जावंगे अवश्य । यदि ब्रह्मा भी आकर कहें यह क्या, तो उनका भी मल दिया जावेगा; यदि किसी संकोच से ऐसा न किया सकेगा तो कान मलने को हाथ तो अवश्य उठ जावेगा। वात : समय उससे भले ही काम लिया जावे, पर कविता लिखने के स क्या मजाल कि बोलचाल की कोई कल ठीक रहने पावे। वे करेंगे बडी लम्बी लम्बी, तोड़ेगे आसमान के तारे ही, चाहे वे नि की समझ में भले ही न आवे, और उनका हाथ भले ही यहाँ तक पहुँच सके। वे प्राचीनो की रचनाएँ मुनकर कान पर हाथ रस होठ काटेंगे, चाहे उनकी कविताएं इस-योग्य भी न हो कि किस कानो में पड़े। देश-प्रेम से उनका भी कोई संबंध नहीं, ऐसा करन > .