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पृष्ठ:रसकलस.djvu/२९१

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रसकलस ४२ याही भॉति अन्न भाव रैहै जो अभाव भरो कैसे पेट भूरि-भूखे भारत को भरिहै ॥२॥ दोहा- लोल लोचनन को किये ललना परम अलोल । कहा करति है कल्पना कर पर रखे कपोल ।।३।। १२-मोह भय, दुख, घबराहट और भ्रमजनित चित की साधारण अचेतनता और भ्रांति को 'मोह' कहते हैं। इसके लक्षण मूळ, अज्ञान, पतन, सिर घूम जाना आदि हैं। कवित्त- छिति-छवि-पुजता अमोल-मुकुतावलि को मजु-ग-तारन मैं पोहत रहत है। मलय-अनिल नभ-तल नीलिमा मैं लसि चित चोरिवे को पथ जोहत रहत है। 'हरिऔध' चारुता-निकेतन-मयक माहिं तारन-कतारन मैं सोहत रहत है। होवै महा-महिम महान मतिमान होवै काको मन माह नाहिं मोहत रहत है।॥ १॥ प्रेमी-जन कैसे प्रेम-पथ को पथिक होतो प्रेम के हिंडोरे माहि प्रेमिका क्यों मूलती। दीपक पै गिरिकै पतग क्यो दहत गात मृगी क्या वधिक की वधिकता कबूलती ।। 'हरिऔध' मोहकता होति जो न मोह माहि मोहित करति क्यो लवग-लता फूलती। वैधिधि कोमल कमल के उदर माहिं मधुप-अवलि क्यो मधुपता को भूलती ॥२॥