पृष्ठ:रसकलस.djvu/२९८

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"४६ संचारी भाव मौन। जासु भावमयता कहत गहत भारती भूतल मैं भारत - सरिस भूरि - भाग है कौन ||५|| १८-उत्सुकता अभीष्ट की प्राप्ति में विलंब का असहन 'उत्सुकता' कहलाता है । इसके लक्षण 'चित्त सत्ताप, आतुरता, आकुलता, नि:श्वास, पसीना आदि हैं। कवित्त-- सरसाइ वरसाइबर सुधा कव मानस-गगन मैं मयक-सम खिलिहौ । कव उर मॉहि जमी मादकता-मैल कॉहिं निज अनुकूलता सु छूरिका ते छिलिहौ । 'हरिऔध' कव वैनतेयता - बनक लेके मेरे पाप - पुंज पन्नगाधिप को गिलिहौ। पलक - पलक पर लालसा सतावति है सौगुनी ललक भई लाल कब मिलिहौ ।।१।। सबैया- मानव की मति दानवता तजि मानवता कव मंजु लहैगी । नीति कुनीति कहै है नहीं कब सुंदर-नीति सुपंथ गहेगी। श्राकुल है 'हरिऔध' महा कब आकुलता कतहूँ न रहेगी। प्रेम-सुधाकर के करते कव शांति-सुधा वसुधा मैं बहेगी ।।२।। दोहा- रहत रैन-दिन अति-दुचित चित नहिं पावत चैन । कब मुख कमल दिखाइहौ अमल-कमल-दल नैन ।।३।। काहे नाहिं कृपायतन करत कृपा की कोर । लाखन अँखियों हैं लगी तव अँखियन की ओर ||४||