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पृष्ठ:रसकलस.djvu/३०२

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13 संचारी भावः २२-बीड़ा कारणविशेष से जिस लजा का हृदय में सचार होता है उसे 'बीदा' कहते हैं। इसके लक्षण मानव संकोच, सिर का नीचा होना आदि हैं । कवित्त- पानी गिर गयो जिन आँखिन को कैसे तिनै पानी वारी करिकै अपानिपता हरिहै। भली जो वनति है भली कहि बुराइन को कैसे भाव उनमें भलाइन को भरिहै। 'हरिऔध' जाति-मुख-लालिमा रहैनी किमि कुल-कामिनी ही जो न कालिमा ते डरिहै। आवत समीप जो लजाति अहै लाज ही तो लाज वारो लाज को इलाज कहा करिहै ।। घरनी जो घर को बनाइहै न सॉचो घर घर वारो घर की विपति कैसे सहि है। कामिनी जो कैहै काम नाहि कुल-कामिनी को कामुक को कुल तो कुलीनता क्यो लहिहै। 'हरिऔध' पय जो पिआइहै न पय वारी कैसे कवौं अ-पय उरो ते पय बहि है। लाज-चारी यदि लाज करत लजाइहै तो कोऊ लाजवारो कैसे लाज-वारी रहि है ॥२॥ दोहा- लाज गॅवावति जाति की नेक न आई लाज । गजव गुजारत दीन पै सिर पै गिरी न गाज ||३|| सुंदरता के सजन को है अति सुंदर साज। है कुलीनता की तुला कुल-तलाना की लाज ||४||