पृष्ठ:रसकलस.djvu/३०४

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संचारी भाव तिनके मानस देखियत कालहुँ चाहि कराल। निज लालन के हित हनहिं जे औरन के लाल ।। ४ ।। २४--निद्रा परिश्रम, क्लाति, ग्लानि और मादक द्रव्य-सेवन आदि से उत्पन्न चित्र के वाह्य विषयों से निवृत्ति का नाम 'निद्रा' है । इसके लक्षण जभाई, आँख मींचना, उच्छ्वास और अंगड़ाई लेना श्रादि हैं। कवित्त-- अलसात, जात, अंग तारितोरि अगिरात बहुत जम्हात रात वीति गई सारी है। बुरे-बुरे सपन विलोकि कै विकल होत सुरति भये हूँ नाहिँ सुरति सँभारी है। 'हरिऔध' काहू के जगाये हे जगत नाहिँ विपुल पुकारे हूँ न पलक उघारी है। अधखुली ऑखिन को खोलि-खोलि मूंद लेत खुलि-खुलि ऑखि नहि खुलति हमारी है ।।१।। खोलत न मुख देह गेह की नहीं है सुधि सूरज उगे हूँ सारी सुरति विगोये हैं हिलत न डोलत न बोलत बुलाये नेक होत न सचेत अचेतनता समोये हैं। 'हरिऔध' हारि गयो उठत उठाये नाहि कहा काहू वेदना ते राति भर रोये हैं। खुलि खुलि केहूँ नींद खुलि है सकति नाहिं कव के उनींदे हैं कि ऐसी नोंद सोये हैं ॥२॥