पृष्ठ:रसकलस.djvu/३०६

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संचारी भाव सवैया- मोपैन मंत्र प्रयोग भयो कोऊ मोहि डस्यो न भुअंगम कारो। भूत की बाधा न मापै भई नर्हि बावरों-सो भयो चित्त हमारो। तू उपचार के व्योंत करै कहा जाने कहा 'हरिऔध' बेचारो। बान-सी मारि गयो उर मैं अरी वीर बड़ी-बड़ी आँखिनवारो।।३।। दोहा- सारे सुख मैं बहत हैं विविध दुखन के सोत । है सब योग-बियाग-मय भोग-रोग-मय होत ।। ४ ।। सुख चाहे नहिं सुख मिलत सहे वनत दुख-भोग । मेरो रोगी तन भयो कबहूँ नाहिं निरोग ।।५।। २६-मरण कारण विशेष से शरीर से प्राण-वायु निकल जाने का नाम 'मरण' है। इसके लक्षण श्वास-हीनता, निष्प्राणता आदि हैं। कवित्त- काल-गति अवलोकि धरिबो धरा पै पग कीरति कमाइवो है काल-बल हरियो । लोक-पति-लाह अहै लहिबो अमर पद लोमसता अहै लालसान ते उवरिवो। 'हरिऔध' हुँबो बलि लोक-हित-वेदिका पै मान के सहित जाति-मान रखि मरिवो। जीवन गॅवाइ जीवो अहै जगती-तल मैं अहै वसुधा-तल सुधा-पान करिवो ॥2॥ सकल मही-तल मै महिमा-निकेतन की महनीय-महिमा निहारि उहमत है। २४ मै