पृष्ठ:रसकलस.djvu/३३१

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रसकलस दाँत दोहा- हैं मोती से, कुंद के कोरक से दरसात । चंद्रमुखी के चारुतामय चमकीले दॉत ।। १॥ ललकित लोयन मैं बहुति अभिनव रस की धार । दारिम-दाने सी लसी दसनावली निहार ॥२॥ रसना दोहा- कवहूँ वरसति है सुधा कवहु वनति सुखदानि । रसमय जीवन करति है रसना रस की खानि ।। १ ।। बहु-विध-वचनावलि-जननि कलित कला की केलि । है रसालता की थलो है रसना रम-वेलि ।। २ ॥ वाणी दोहा- बहु विलास की सहचरी मजुल-रुचि-अनुभूति । वर-बरनीवानी अहै मधुमय - कथन - विभूति ।। १ ।। वीन सरिस कल-नादिनी उन्मादिनी अपार । है गौरागिनि की गिरा स्वर - गौरव - आगार |॥ २॥ हँसी दोहा- हंसे खिलति है चॉदनी बहति सुधा की धार । दमकि जाति है दामिनी रीझत है रिझवार ।। १ ।। बिलसि मनोहर अधर पे हँसी मोहि मन लेति । बरबस मोह-मरीचिका डारि मोहिनी देति ॥ २॥