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पृष्ठ:रसकलस.djvu/३४८

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६६ नायिका के भेद नाना कुल-कालिमा-कलुख की कलिदजा है कल-करतूत-मंजु - मालिका लरी सी है। 'हरिऔध' बहु - भ्रम - भवर समूह भरी सकल - कुरीति - सरि सबल • तरी सी है। जाति - हित - पादप - जमात नव-जीवन है जाति - जन - जीवन सजीवन-जरी सी है ||१|| भारतीय - भव - पूत - भावन - बिभूति पाइ भाव - मयी अपने प्रभावन हरति है। अवलोकि अवलोकनीय - बहु - बभव को काल - अनुकूल अनूकूलता करति है।। 'हरिऔध' भारत को भुव - सिरमौर जानि भावना मैं बिभु-सिरमौरता भरति है। धारि धुर सुधरि समाज को सुधारति है धीर धरि जाति को उधारि उधरति है॥२॥ देश-प्रेमिका कवित्त- गौरवित सतत अतीत - गौरवों ते होति गुरुजन - गुरुता है कहती कवूलती। मुदित बनति अवनीतल मैं फैलि फैलि कीरति की कलित - लता को देखि फूलती ।। 'हरिऔध' प्रकृति - अलौकिकता अवलोकि प्रेम के हिंडोरे पै है पुलकित मूलती । भारत की भारती - बिभूति ते प्रभावित है भामिनि भली है भारतीयता न भूलती ॥११॥