पृष्ठ:रसकलस.djvu/३५०

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१०१ नायिका के भेद नयन मैं नयन - विमोहन - सुमन छवि मन मै बसति मधु - माधव - मधुरिमा। कवि - कल - कंठता है विलसति कानन मैं, आनन मैं अमित - महानन की महिमा । 'हरिऔध' धी मैं धमनीन मैं विराजति है वसुधा - धवल - कर - कीरति • धवलिमा। अंग अंग मैं है अनुराग - राग - अंगना के रोम रोम मैं है रमी भारत की गरिमा ।।५।। सुरसरि सम सनमानति सकल सरि सारे सर मैं है मानसरता निहारती । सुमनस - सुमन कहति सुमनावलि को लतिका को कल्पलतिका है निरधारती । 'हरिऔध' अंगना भुवन मैं पुनीत भनि भारत - अवनि की उतारति है आरती। रजत निछावर करति रज - पुंजन पै मंजुल - राजीव - राजि पै है राज वारती ।।६।। पग ते गहति पग पग पै पुनीत - पथ अमर - निकर काज कर ते करति है। गाइ गाइ गुन - गन सुगुन - निकेतन के मंजु - वर लहि वर - विरद - वरति है। 'हरिऔध' मानस मैं भूरि - कमनीय - भाव भारत की वंदनीय - भूति के भरति है। सुर - धुनि - धार को परसि उधरति वाल धरती की धूरि लै लै सिर पै धरति है ॥ ७ ॥