पृष्ठ:रसकलस.djvu/३५६

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१०७ नायिका के भेद लालसा रखति है ललित - रुचि लालन की लोक - हित खेत को लुनाई ते लुनति है। रुचिर - विचार - उपवन मैं विचरि बाल चावन के सुमन - सुहावन चुनति है। 'हरिऔध' आठौ - याम-परम-अकाम रहि भुवनाभिराम राम - गुनन गुनति है । सुर-लीन - मानस • निकुज माहिं प्रेम-रली मुरली - मनोहर को मुरली सुनति है ।। २।। भाल पै भलाई की बिभूति - भल विलसति नीकी - नीति निवसति नयन - निकाई में । रसना सरस है रहति राम रस चाखि लसति विमलता है लोचन • लुनाई मैं । 'हरिऔध' गरिमा ललित - गति में है लसी गुरुता बिराजति है गात की गोगई मैं । लोक-हित-कामना सकल - काम मैं है कसी कमनीयता है वसी कामिनी - कमाई मैं ॥ ३॥ २-मध्यमा प्रियतम-दोष-दर्शिनी, किंचित्कोपन-स्वभावा, व्यंग-विदग्धा, मर्म-पीरिता, स्नेहशीला कितु शकिता स्त्री को मध्यमा कहते हैं । व्यंग-विदग्धा कवित्त भौंह की हरत कमनीयता कमान कहि लोचन लजत वान उपमान लहि कै। काको नाहिँ पीर होति कीर नासिका को कहे विंबाधर - समता - विषमता बेसहि के।