पृष्ठ:रसकलस.djvu/३८६

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१३६ नायिका के भेद - सवैया- तजि रावरी सॉवरी सूरत सॉवरे या हिय और समातो नहीं। वह मीठी सुधा सों सनी वतियाँ सुनि कानन धीर धरातो नहीं। हम कैसी करें 'हरिऔध' कहो अव मोसों कळू तो सिरातो नहीं । इन खिन प्यारे तिहारे बिना जग और तो कोऊ दिखातो नहीं ||४|| दोहा- दमकति नभ मैं दामिनी धन छाये चहुँ ओर । चित तरसत है दरस को वरसत है हग मोर ।। ५ ।। नभ धुरवा धावन लगे विधत विरह के तीर । तनिक धीर नहिं धरि सकत मो चित परम अधीर ।।६।। बरवा- वसत विदेसवॉ बलमु - नदान ।, तलफत मोर करेजवा कलपत प्रान ॥ ७ ॥ चमकत चपल विजुरिया अलि चहुँ पास । कॉपत मोर करेजवा उपजत त्रास ।।८।। परकीया प्रोषितपतिका कवित्त- बावरी है जाती बार वार कहि वेदन को विलखि विलखि जो विहार थल रोती ना। पीर उठे हियरा हमारो टूक टूक होत ध्याइ प्रान-नाथ जो कसक निज खोती ना। 'हरिऔध' प्यारे के पधारि गये परदेस नैन नसि जात जो सपन संग सोती ना । तन जरि जातो जो न असुआ ढरत आली प्रान कढ़ि जातो जो प्रतीति उर होती ना ।।१।।