पृष्ठ:रसकलस.djvu/४१३

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रसकलस १६६ धैर्य वडे से बड़ा विप्न उपस्थित होने पर भी अपने काम पर डटे रहने का नाम धैर्य है। उदाहरण कवित्त--- धरि धरि धूरि मैं मिलेहै उधमिन कॉहिं अधाधुध हूँ को अधपन - सारो खोवैगो। साधि साधि सब साधनान काँहि पैहै सिधि उचित -विधान के अविधि को बिगोवैगो। 'हरिऔध' धीर काम छोरैगो अधूरो नाहि धुन - बारि द्वारा धाक धन्वन को धोवेगो। बाधक के बधन विधिन मैं बधैगो नाँहि वाधा पर वाधा परे बाधित न होवैगो ॥ १॥ विविध - विपुल - विघ्न वारिवाह को समीर बहु - विध - वाधक - विधान-तम - रवि है। सफल - विफलता - सरोजनी को हिम - पात अगति - गहनता - तृनावलि को गवि है। 'हरिऔध' निज - काज- साधन-निरत-धीर नाना - प्रतिवध - पुज - पावक को हवि है। 'प्रापद • श्रगाव - अबुनिधि को है. कुभजात पुंजी - भूत विपद - पहारन को पवि है ।। २ ।। Bir मारत अपनो काज सब भभरत देखि न भीर । पीर न पीरन को गनत वनत अधीर न वीर ॥३॥