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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४१५

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रसकलस दोहा- तजत आनबारो नहीं कबहूँ अपनी आन | बचन - वान नहिं सहि सकत सहत वान पै बान ।। ३ ।। दहत रहत है तूल सम दभिन - दल - अभिमान । तेजवान को तेज है पावक - पुज - समान ॥ ४॥ प्रकृति - पुस्तिका को अहै परम - प्रभा - मय - पेज । दानव-मानस-तम हरत मानव - मन रवि- तेज ॥ ५॥ तेजवान नहिं सहि मकत काहू की ललकार । वार करन हित कर गहत तुरत कोन तरवार ।। ६ ।। तेजवान - कर मैं अहै वह कराल - करवाल । जासु सहचरी कालिका है जेहि सहचर काल ।। ७ ।। ललित वाणी, देश और 2 गार की चेष्टाओ की मधुरता की ललित सज्ञा है । उदाहरण कवित्त---- मधुर युगल • पट - तल - मजु - लालिमा है नूपुर • मधुर • ध्वनि मोहक - मदन है। मयुर कपोल - विलसित - अलकावलि है मधुर अधर · राग - रजित - रदन है। 'हरिऔध' परम - मधुर युग - लोचन है परम - मधुर विधु विमल • बदन है। मधु घरसावत है मधुर मधुर बोलि मधु के समान लाल माधुर्ग - मदन है || १ 17