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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४१७

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सम रसकलस १७० औदार्य प्रियभाषणपूर्वक दान, शत्रुमित्र में समान दृष्टि और चित्त के उदार भाव को औदार्य कहते है। उदाहरण कवित्त-- एकरस सबको मधुर - रस दान काज सरस-रसाल फरत रहत है। वारिधर सरिम वरसि लोक - हित - वारि याचक - समूह - सर भरत रहत है। 'हरिऔध' प्रेम साथ प्रिय बैन बोलि बोलि चैन दैनवारी वानि वरत रहत है। दीनता को दीनता को टरिकै दुरंतमान दिन दिन दानी दान करत रहत है ।। १ ।। चारुतामयी है है अचारुता सहारी नाहि कु-विचार कैसो सुविचारन की सूची हैं। बुगे भाव जाने ना सुभावना - निकेतन है कुरुचिवती न अहैं, सुरुचि - समूची 'हरिऔध' मधी हैं हैं न वक-गति-वारी पगी हैं मनेह में लोहार को न कुँची हैं। नीची कैसे होहि कवा नीचन पे कैमे परें ऊंचन की अँखियाँ रहति अति - ऊँची हैं ।। || कैमे एफ विपुल - पुनीत बनि पुलकत कैपे दृनो पतित कहाइ दुप महतो । घर में बचावरी वजन नित दजो घर कैसे दीह - दावा माहिं दहतो। पक